जब रिलायंस के भी हालात हो गए थे,अडानी जैसे तब किस तरह रिकवर हुआ रिलायंस
अडानी |
इन दिनों अडानी ग्रुप के शेयरों में भारी गिरावट आयी है ताजा रिपोर्ट के मुताबिक अडानी ग्रुप को अभी तक 110 बिलियन डॉलर का नुकसान हो चुका है , अडानी टॉप 3 के लिस्ट से बाहर हो चुके है और 21 वे पायदान पर पहुच चुके है, और अडानी ग्रुप को अमेरिकी शेयर मार्केट ने अनलिस्ट कर दिया है,जिसकी वजह मात्र एक है हिन्दनबर्ग की रिपोर्ट , ये रिपोर्ट जब पब्लिस हुई उसी समय से अडानी ग्रुप के शेयरों के भाव गिरने लगे और तब से लेकर आज तक भाव गिरते ही जा रहे है, लेकिन जैसे बॉलीवुड में हीरो नीचे गिरता तो है मगर वह जब ऊपर चढ़ता है तो बड़े ही शान से चढ़ता है, और यही उम्मीद अडानी से भी की जा रही है कि वह कब ऊपर चढ़ेगा।
और ऐसा ही जैसे की अडानी ग्रुप के साथ हुआ कि इनके शेयर एकदम से आसमान पर जाने लगे थे और अचानक ही धड़ाम से नीचे गिर गया ,ठीक ऐसा ही रिलायन्स के साथ भी हुआ था।
- नवंबर 1977 में धीरूभाई अंबानी ने अपनी कंपनी रिलाएंस को शेयर मार्केट में लिस्ट करवाने का निर्णय लिया था।
- इस समय रिलाइंस ने 10 रुपये के करीब 28 लाख के इक्विटी शेयर जारी किए थे
- एक वर्ष बाद रिलायंस के शेयरों की वैल्यू 5 गुना बढ़ गयी 10 rs वाला शेयर 50 rs का ही गया,फिर 1980 में बढ़कर 104 rs हो गयी और 1986 में 18 गुना बढ़कर 186 rs के हो गए थे।
- 1982 में रिलायंस के साथ 24 लाख से अधिक निवेशक जुड़ चुके थे इसी समय रिलायंस ने अपने निवेशकों के उधार लेने के लिये डिबेंचर्स जारी कर दिया।
डिबेंचर्स का मतलब यह है कि कोई कंपनी अपने निवेशकों से पैसा उधार लेने के लिये पत्र जारी करती है।
इसी समय कोलकाता के दलालों ने धीरूभाई अंबानी को नीचे गिराने के लिए प्लान बनाया, क्योंकि दलाल शेयर को नीचे गिराकर शार्ट सेलिंग से मुनाफा कमाना चाहते थे। फिर दलालो ने रिलायंस के शेयरों को उधार में लेकर सस्ते दामो में बेचना शुरू कर दिया जिससे लोगो मे यह बात फैले की रिलायंस में अब दम नहि रह गया है और लोग इसका शेयर बेचना शुरू कर दे और जब लोग बेचना शुरू कर देंगे तो रिलायंस के भाव स्वतः ही गिर जाएगा ,लेकिन यह बात धीरूभाई अंबानी को पता चल गई कि शेयर मार्केट के दलाल ऐसा करने वाले है तब उन्होंने अपने मित्र को यह बात बताई की ऐसा होने वाला है ,तब उनके मित्र ने रिलायंस के 11 लाख शेयरों में से 8 लाख शेयर महंगे दामो पर खरीद लिया जिससे रिलायंस के दाम गिरे ही नही ,और दलालो के पसीने छूट गए।
ठीक ऐसे ही अडानी के साथ हुआ है जब अडानी अपनी कंपनी के PFO लेकर आ रहा था तभी हिण्डनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट पब्लिश कर दी और लोगो के मन मे अडानी के शेयरों के प्रति नकारात्मक विचार आ गया जिससे अडानी के शेयरों की वैल्यू अचानक गिर गयी। लेकिन अडानी ने रिलायंस की तरह अपने pfo के दाम को गिरने नही दिया, अडानी ने अपने PFO को अपने जानने वालों से ही महंगे दामो में
खरीदवा लिया।
क्या कंपनियां अपना लाभ अपने शेयर धारको में बाटती है?