Puja Niyam: पूजा करने के नियम, पूजा करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
हम सब रोज पूजा करते है, लेकिन इस भाग दौड़ भरी लाइफ की वजह से हम सब कभी न कभी पूजा करने में जल्दबाजी और गलती कर देते है, क्या आपको पता है कि आप चाहें जैसे भी पूजा करते हो लेकिन पूजा करने का भी एक नियम होता है, जैसे आपको किस दिशा में मुख करके पूजा करनी है, कौन सी देवी या देवता को कैसे पुष्पों को चढ़ाना है तथा पूजा करते समय पूजन की किस वस्तु को किधर रखना चाहिये, तुलसी के पत्ते कैसे तोड़ना चाहिए, तुलसी के पत्ते किस दिन नहीं तोड़ना चाहिए, बेलपत्र किस दिन नहीं तोड़ना चाहिए, अगर यह बातें आपको नही पता है तो हम इन सभी बातों को इस आर्टिकल में बताने जा रहे है जिसे आप अध्ययन करके अपनी पूजा को व्यवस्थित कर सकते है।
पूजा करते समय पूजन की किस वस्तु को किधर रखना चाहिये
इस बात का भी शास्त्र ने निर्देश दिया है। इसके अनुसार वस्तुओं को यथास्थान सजा देना चाहिये।
बायीं ओर
(1) सुवासित जल से भरा जलपात्र
(2) घंटा
(3) धूपदानी और
(4) तेलका दीपक भी बायीं ओर रखे।
दायीं ओर
(1) घृतका दीपक और
(2) सुवासित जलसे भरा शङ्ख।
सामने
(1) कुंकुम (केसर) और कपूर के साथ घिसा गाढ़ा चन्दन,
(2) पुष्प आदि हाथ में तथा चन्दन ताम्रपात्र में न रखे।
(3) भगवान् के आगे-चौकोर जल का घेरा डालकर नैवेद्य की वस्तु रखे।
सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु-ये पञ्चदेव कहे गये हैं। इनकी पूजा सभी कार्यों में करनी चाहिये। कल्याण चाहने वाले गृहस्थ एक मूर्ति की ही पूजा न करें, अनेक देवमूर्ति की पूजा करें, इससे कामना पूरी होती है। किन्तु घर में दो शिवलिङ्ग, तीन गणेश, दो शङ्ख, दो सूर्य, तीन दुर्गामूर्ति, दो गोमतीचक्र और दो शालग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशान्ति होती है। शालग्राम की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती। बाणलिङ्ग तीनों लोकों में विख्यात हैं, उनकी प्राण प्रतिष्ठा, संस्कार या आवाहन कुछ भी नहीं होता।
पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओं की मूर्तियों की प्रतिष्ठा घर या मन्दिर में करनी चाहिये। घर में चल प्रतिष्ठा और मन्दिर में अचल प्रतिष्ठा करनी चाहिये। यह कर्मज्ञानी मुनियों का मत है। गंगा जी में, शालग्राम शिला में तथा शिवलिङ्ग में सभी देवताओं का पूजन बिना आवाहन-विसर्जन किया जा सकता है।
तुलसी के पत्ते कैसे तोड़ना चाहिए
तुलसी का एक-एक पत्ता न तोड़कर
पत्तियों के साथ अग्रभाग को तोड़ना चाहिये। तुलसी की मञ्जरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है। मञ्जरी तोड़ते समय उसमें पत्तियों का रहना भी आवश्यक माना गया है।
तुलसी के पत्ते किस दिन नहीं तोड़ना चाहिए
वैधृति और व्यतीपात - इन दो योगों में, मंगल, शुक्र और रवि इन तीन वारों में, द्वादशी, अमावास्या एवं पूर्णिमा इन तीन तिथियों में, संक्रान्ति और जननाशौच तथा मरणाशौच में तुलसीदल तोड़ना मना है। संक्रान्ति, अमावास्या, द्वादशी, रात्रि और दोनों संध्याओं में भी तुलसीदल न तोड़े,
किंतु तुलसी के बिना भगवान् की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती, अतः निषिद्ध समय में तुलसी वृक्ष से स्वयं गिरी हुई पत्ती से पूजा करे (पहले दिन के पवित्र स्थान पर रखे हुए तुलसीदल से भी भगवान् की पूजा की जा सकती है)। शालग्राम की पूजा के लिये निषिद्ध तिथियों में भी तुलसी तोड़ी जा सकती है। बिना स्त्रान के और जूता पहनकर भी तुलसी न तोड़े।
बेलपत्र किस दिन नहीं तोड़ना चाहिए
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावास्या तिथियों को, संक्रान्ति के समय और सोमवार को बेलपत्र (बिल्वपत्र) न तोड़े। किंतु (बिल्वपत्र) शंकर जी को बहुत प्रिय है, अतः निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा बेलपत्र (बिल्वपत्र) चढ़ाना चाहिये। शास्त्र ने तो यहाँ तक कहा है कि यदि नूतन बेलपत्र (बिल्वपत्र) न मिल सके तो चढ़ाये हुए बेलपत्र को ही धोकर बार-बार चढ़ाता रहे।
बासी जल और फूल का निषेध
जो फूल, पत्ते और जल बासी हो गये हों, उन्हें देवताओं पर न चढ़ाये। किंतु तुलसीदल और गंगाजल बासी नहीं होते। तीर्थों का जल भी बासी नहीं होता। वस्त्र, यज्ञोपवीत और आभूषण में भी निर्माल्य का दोष नहीं आता।
माली के घरमें रखे हुए फूलों में बासी दोष नहीं आता। दौना तुलसी की ही तरह एक पौधा होता है। भगवान् विष्णु को यह बहुत प्रिय है। स्कन्दपुराण में आया है कि दौना की माला भगवान् को इतनी प्रिय है कि वे इसे सूख जाने पर भी स्वीकार कर लेते हैं। मणि, रत्न, सुवर्ण, वस्त्र आदिसे बनाये गये फूल बासी नहीं होते। इन्हें प्रोक्षण कर चढ़ाना चाहिये।
भगवान को फूल चढ़ाने के नियम
फूल, फल और पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे ही इन्हें चढ़ाना चाहिये। उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपर की ओर होता है, अतः चढ़ाते समय इनका मुख ऊपर की ओर ही रखना चाहिये। दूर्वा एवं तुलसीदल को अपनी ओर और बिल्वपत्र नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिये। दाहिने हाथ के करतलबको उत्तान कर मध्यमा, अनामिका और अँगूठे की सहायता से फूल चढ़ाना चाहिये।
फूल उतारने का नियम
चढ़े हुए फूल को अँगूठे और तर्जनी अंगुली की सहायता से उतारना चाहिये।
देवी के लिये विहित-प्रतिषिद्ध पत्र-पुष्प
आक और मदार की तरह दूर्वा, तिलक, मालती, तुलसी, भंगरैया और तमाल विहित-प्रतिषिद्ध हैं अर्थात् ये शास्त्रों से विहित भी हैं और निषिद्ध भी। विहित-प्रतिषिद्ध के सम्बन्ध में तत्त्व सागर संहिता का कथन है कि जब शास्त्रों से विहित फूल न मिल पायें तो विहित-प्रतिषिद्ध फूलों से पूजा कर लेनी चाहिये।
शिव जी को कौन सा फूल नहीं चढ़ाना चाहिए
कदम्ब, सारहीन फूल या कठूमर, केवड़ा, शिरीष, तिन्तिणी, बकुल (मौलसिरी), कोष्ठ, कैथ, गाजर, बहेड़ा, कपास, गंभारी, पत्रकंटक, सेमल, अनार, धव, केतकी, वसंत ऋतु में खिलने वाला कंदविशेष, कुंद, जूही, मदन्ती, शिरीष, सर्ज और दोपहरिया के फूल भगवान् शिव पर नहीं चढ़ाने चाहिये।
भगवान विष्णु को कौन सा फूल नहीं चढ़ाना चाहिए
आक, धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, कुरैया, सेमल, शिरीष, चिचिड़ा (कोशातकी), कैथ, लाङ्गुली, सहिजन, कचनार, बरगद, गूलर, पाकर, पीपर और अमड़ा (कपीतन)। घर पर रोपे गये कनेर और दोपहरिया के फूल का भी निषेध है।
भगवान सूर्य को कौन सा फूल नहीं चढ़ाना चाहिए
गुंजा (कृष्णला), धतूरा, कांची, अपराजिता (गिरिकर्णिका), भटकटैया, तगर और अमड़ा इन्हें सूर्य पर न चढ़ाये। वीर मित्रोदय ने इन्हें सूर्य पर चढ़ाने का स्पष्ट निषेध किया है।
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