जब इलाहाबाद की गलियों में बरसा था ‘सदी के महानायक’ का जादू — 1984 में अमिताभ बच्चन के रोड शो में दुपट्टे, चिट्ठियाँ और दीवानगी का सैलाब
स्थान: इलाहाबाद | विशेष रिपोर्ट: वेब मीडिया डेस्क
🌟 एक ऐसा दृश्य, जो इतिहास बन गया...
1984 — देश की राजनीति एक नए मोड़ पर थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी देश की कमान संभाल चुके थे। उसी साल कांग्रेस ने सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट दिया। यह फैसला राजनीति ही नहीं, बल्कि जनभावनाओं के स्तर पर भी ऐतिहासिक साबित हुआ — क्योंकि जब ‘सदी का नायक’ प्रचार के लिए सड़कों पर उतरा, तो इलाहाबाद की गलियों ने इतिहास लिख दिया।
🚗 रोड शो या फिल्म का दृश्य?
कांग्रेस के प्रचार अभियान के दौरान जब अमिताभ बच्चन की जीप आनंद भवन से होते हुए कटरा, विश्वविद्यालय रोड और आनंद भवन की गलियों से गुज़री — तो मानो पूरा शहर उमड़ पड़ा।
लड़कियाँ अपने दुपट्टे सड़क पर फेंक देतीं, ताकि उनका स्पर्श उस गाड़ी से हो जाए जिसमें उनके पसंदीदा नायक बैठे थे। कई प्रशंसक तो चिट्ठियाँ और फूलों के गुलदस्ते उनकी ओर उछालते — और कुछ तो गाड़ी के पीछे दौड़ते हुए “शोले के जय” या “दीवार के विजय” का नाम पुकारते।
“उस दिन इलाहाबाद किसी फिल्म के सीन जैसा लग रहा था… अमिताभ बच्चन को देखने के लिए ऐसा सैलाब उमड़ा था, जैसा कभी किसी नेता के लिए नहीं देखा गया।” — स्थानीय बुजुर्ग
💬 जनता का प्यार, कांग्रेस का भरोसा
राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन की दोस्ती पुरानी थी। दोनों ही देहरादून के ‘दून स्कूल’ में पढ़े थे। राजीव को विश्वास था कि अमिताभ की लोकप्रियता कांग्रेस के लिए गेम-चेंजर साबित होगी — क्योंकि इलाहाबाद से कांग्रेस लंबे समय से नहीं जीत पाई थी।
उनका यह दांव सफल हुआ — अमिताभ बच्चन ने जनता पार्टी के दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को लाखों वोटों के अंतर से हराकर जीत दर्ज की।
⚖️ पर राजनीति की राह आसान नहीं थी
इतिहासकारों के मुताबिक, अमिताभ बच्चन का वह रोड शो और चुनावी जीत भारतीय लोकतंत्र में “सेलेब्रिटी पॉलिटिक्स” की सबसे बड़ी मिसाल थी।
लेकिन 1987 में उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। बाद में उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा —
“राजनीति में मैं दिल से गया था, पर वह दुनिया मेरे लिए नहीं थी।” — अमिताभ बच्चन
🕊️ आज भी जिंदा हैं वो यादें
“जिस दिन अमिताभ बच्चन आए थे, पूरा शहर झूम उठा था। दुपट्टे उड़ रहे थे, चिट्ठियाँ बरस रही थीं — और इलाहाबाद के लोगों ने अपने नायक को संसद भेजा था।”
📜 निष्कर्ष
अमिताभ बच्चन का 1984 वाला इलाहाबाद चुनाव सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि भावनाओं का उत्सव था। उस दौर के रोड शो ने दिखा दिया था कि जब सिनेमा और राजनीति मिलते हैं, तो जनता का प्रेम कैसा सैलाब बन जाता है।
